Poems By Harivansh Rai Bachchan in Hindi दोस्तों आज हमने हिंदी साहित्य के महान लेखक और कवि हरिवंश राय बच्चन की कविताओं का वर्णन किया है। हरिवंश राय बच्चन की कविताएं हिंदी साहित्य में काफी प्रसिद्ध है,जिनमें मधुशाला कविता काफी प्रसिद्ध है। आईए जानते है उनकी सर्वश्रेष्ठ रचनाओं को।
Contents
Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi
हारना
तब आवश्यक हो जाता है
जब लड़ाई अपनो से हो
ओर जितना
तब आवश्यक हो जाता है
जब लडाई
अपने आप से हो
मंजिल
मिले ये तो मुकदर की बात है
हम कोशिश न करे
ये तो गलत बात है
किसी ने बर्फ से पूछा
की आप इतने ठंडे क्यों हो ?
बर्फ ने कहा
मेरा अतीत भी पानी है
मेरा भविष्य भी पानी है
फिर में
घमंड किस बात की रखू
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गिरना भी अच्छा है,
ओकत का पता चल जाता है
बढ़ते है जब हाथ उठाने को
अपनो का पता चलता है
Harivansh Rai Bachchan ki Kavita
सीख रहा हूं
अब में भी इंसानों को
पढ़ने का हुनर…
सुना है
चंहेरे पर किताबो से
ज्यादा लिखा होता है।
रब ने नवाजा हमे
जिंदगी देकर
हम शौहरत मांगते रह गए।
कफन ये
ये जनाजे
ये कब्र
सिर्फ बाते हैं मेरे दोस्त
वर्ना
मर तो इंसान तब ही जता है
जब याद करने वाला कोई न हो
ये समंदर भी तेरी तरह
खुदगर्ज निकाला
जिंदा थे तो तैरने न दिया
मर गए तो डूबने न दिया
क्या बात करे इस दुनिया की
हर शक्श के अपनें अफसाने है
जो सामने है उसे बुरा कहते है
ओर
जिसको कभी देखा नहीं
उसे सभी खुदा कहते है।
हरिवंश राय बच्चन की कविता हिंदी में Short Poem
जब मुसीबत आये तो समझ जाना जनाब
जिंदगी हमे कुछ नया सिखाने वाली है
जिंदगी में इतने व्यस्त हो जाओ की
उदास होने का वक्त ही न मिले
कोई इतना आमिर नहीं है की अपना पुराना वक्त खरीद सके
और कोई इतना गरीब नहीं की अपना आने वाला कल बदल सके।
मजबूरिया देर रात तक जागती है
और
जिम्मेदारिया आपको सुबह जल्दी उठा देती है।
Best Poems By Harivansh Rai Bachchan in Hindi
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मुट्ठी मे कुछ सपने लेकर
भरकर जेबों में आशाएं
दिल में है अरमान यही
कुछ कर जाएं – कुछ कर जाएं
सूरज सा तेज नही मुझमें
दीपक सा जलता देखोगे
अपनी हद रोशन करने से
तुम मुझको कब तक रोकोगे
मैं इस माटी का वृक्ष नही
जिसको नदियों ने सीचा है
बंजर माटी में पलकर मेने
मृत्यु से जीवन खींचा है
मैं पत्थर पर लिखी इबादत हु
सीसे कब तक तोड़ोगे
मिटने वाला में नाम नहीं
तुम मुझको कब तक रोकोगे
इस जग में जितने जुल्म नही
उतने सहने की ताकत है
तानो के भी शोर में रहकर
सच कहने की आदत है
में सागर से भी गहरा हु
तुम कितने कंकर फेकोगे
चुन चुन कर आगे बडूंगा मे
तुम मुझको कब तक रोकोगे
Harivansh Rai Bachchan Hindi Poems
लोट जाता हूं वापस घर की तरफ
हर रोज थका हारा…
आज तक समझ नहीं आया
की काम करने के लिए
जीता हु
या जीने के लिए काम करता हु
बचपन में सबका पूछा गया
सवाल
की बड़े होकर क्या बनना है
जवाब अब मिला
फिर से बच्चा बनना है
थक गया हूं तेरी नौकरी
से ए जिंदगी..
मुनासिब होगा मेरा की
हिसाब कर दे
दोस्तो से बिछड़कर ये हकीकत खुली
बेशक कमीने थे
पर रौनक उन्ही से थी
भरी जेब से दुनिया की पहचान करवाई
ओर खाली जेब से अपनो की
जब लगे पैसे कमाने
तो समझ आया
की शोक तो मां बाप के
पैसों से पूरे होते थे।
Harivansh Rai Bachchan Ki Kavita
प्यास लगी थीं गजब की
मगर पानी मै जहर था
पीते तो मर जाते ओर
ना पीते तो भी मर जाते
बस यही दो मशले जिंदगीभर न हल हुए
ना नींद पूरी हुई ना ख्वाब पूरे हुई।।
वक्त ने कहा काश थोड़ा और सब्र होता
सब्र ने कहा काश थोड़ा वक्त और होता
सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहाब
आराम कमाने निकलता हु आराम छोड़कर
हुनर सड़को पर तमाशा करता है और
किस्मत महलों पर राज करती हैं
शिकायते तो तुझसे बहुत है जिंदगी
पर को दिया तुमने बहुत को नसीब नहीं होता है
अजीब सौदागर है ये वक्त भी
जवानी का लालच देकर बचपन ले गया
अब अमीरी का लालच दे जवानी ले जाएगा।
ये ज़िंदगी का रंगमंच है दोस्तो
यहां हर एक को नाटक करना पड़ता है
माचिस की जरूरत यहां नही पड़ती
यहां आदमी आदमी से जलता है
दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट
मंगल पर जीवन ढूंढ रहे हैं
पर आदमी यह नहीं ढूंढ रहा है
की जीवन में मंगल है या नही
मन्दिर में फुल चढ़ा कर आए
तो यह अहसास हुआ कि
पथरो को मानने में
फूलो का कत्ल कर आए हम।
Best Famous poems By Harivansh Rai Bachchan in Hindi
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो
नीड़ का निर्माण
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्णान फिर-फिर!
वह उठी आँधी कि नभ में
छा गया सहसा अँधेरा,
धूलि धूसर बादलों ने
भूमि को इस भाँति घेरा,
रात-सा दिन हो गया, फिर
रात आई और काली,
लग रहा था अब न होगा
इस निशा का फिर सवेरा,
रात के उत्पात-भय से
भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा की
मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्णान फिर-फिर!
वह चले झोंके कि काँपे
भीम कायावान भूधर,
जड़ समेत उखड़-पुखड़कर
गिर पड़े, टूटे विटप वर,
हाय, तिनकों से विनिर्मित
घोंसलो पर क्या न बीती,
डगमगाए जबकि कंकड़,
ईंट, पत्थर के महल-घर;
बोल आशा के विहंगम,
किस जगह पर तू छिपा था,
जो गगन पर चढ़ उठाता
गर्व से निज तान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्णान फिर-फिर!
क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों
में उषा है मुसकराती,
घोर गर्जनमय गगन के
कंठ में खग पंक्ति गाती;
एक चिड़िया चोंच में तिनका
लिए जो जा रही है,
वह सहज में ही पवन
उंचास को नीचा दिखाती!
नाश के दुख से कभी
दबता नहीं निर्माण का सुख
प्रलय की निस्तब्धता से
सृष्टि का नव गान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्णान फिर-फिर!
हरिवंश राय प्रेम गीत
जमीन है न बोलती, न आसमान बोलता..
जहान देखकर मुझे, नहीं जबान खोलता..
नहीं जगह कहीं जहां, न अजनबी गिना गया..
कहां-कहां न फिर चुका, दिमाग-दिल टटोलता..
कहां मनुष्य है कि जो, उमीद छोड़कर जिया..
इसीलिए खड़ा रहा, कि तुम मुझे पुकार लो.
इसीलिए खड़ा रहा, कि तुम मुझे पुकार लो..!
तिमिर-समुद्र कर सकी, न पार नेत्र की तरी..
विनष्ट स्वप्न से लदी, विषाद याद से भरी..
न कूल भूमि का मिला, न कोर भोर की मिली..
न कट सकी, न घट सकी, विरह-घिरी विभावरी..
कहां मनुष्य है जिसे, कमी खली न प्यार की..
इसीलिए खड़ा रहा कि, तुम मुझे दुलार लो..!
इसीलिए खड़ा रहा कि, तुम मुझे पुकार लो..!
उजाड़ से लगा चुका, उमीद मैं बहार की..
निदाघ से उमीद की, बसंत के बयार की..
मरुस्थली मरीचिका, सुधामयी मुझे लगी..
अंगार से लगा चुका, उमीद मैं तुषार की..
कहां मनुष्य है जिसे, न भूल शूल-सी गड़ी..
इसीलिए खड़ा रहा कि, भूल तुम सुधार लो..!
इसीलिए खड़ा रहा कि, तुम मुझे पुकार लो..!
पुकार कर दुलार लो, दुलार कर सुधार लो..!
अग्निपथ /Agneepath Poem by Harivansh Rai Bachchan
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु स्वेद रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
मधुशाला : भाग -1 | Madhushala Poem in Hindi
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१।
प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।२।
प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३।
हरिवंश राय बच्चन की कविताएं
भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।४।
मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।।५।
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,
‘किस पथ से जाऊँ?’ असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ –
‘राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।’। ६।
चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
‘दूर अभी है’, पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,
किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।।७।
Madhushala Poem in Hindi
मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,
हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,
ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,
और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला।।८।
मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,
बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,
रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला।।९।
सुन, कलकल़ , छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला,
सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,
बस आ पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है,
चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला।।१०।
जलतरंग बजता, जब चुंबन करता प्याले को प्याला,
वीणा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला,
डाँट डपट मधुविक्रेता की ध्वनित पखावज करती है,
मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला।।११।
Harivansh Rai Bachchan Poem
मेहंदी रंजित मृदुल हथेली पर माणिक मधु का प्याला,
अंगूरी अवगुंठन डाले स्वर्ण वर्ण साकीबाला,
पाग बैंजनी, जामा नीला डाट डटे पीनेवाले,
इन्द्रधनुष से होड़ लगाती आज रंगीली मधुशाला।।१२।
हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला,
अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,
बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले,
पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला।।१३।
लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,
फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं,
पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला।।१४।
जगती की शीतल हाला सी पथिक, नहीं मेरी हाला,
जगती के ठंडे प्याले सा पथिक, नहीं मेरा प्याला,
ज्वाल सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की कविता है,
जलने से भयभीत न जो हो, आए मेरी मधुशाला।।१५।
Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi
बहती हाला देखी, देखो लपट उठाती अब हाला,
देखो प्याला अब छूते ही होंठ जला देनेवाला,
‘होंठ नहीं, सब देह दहे, पर पीने को दो बूंद मिले’
ऐसे मधु के दीवानों को आज बुलाती मधुशाला।।१६।
धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।।१७।
लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला,
हर्ष-विकंपित कर से जिसने, हा, न छुआ मधु का प्याला,
हाथ पकड़ लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा,
व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला।।१८।
बने पुजारी प्रेमी साकी, गंगाजल पावन हाला,
रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला’
‘और लिये जा, और पीये जा’, इसी मंत्र का जाप करे’
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला।।१९।
बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,
बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,
लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,
रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला।।२०।

माँ पर कविता : हरिवंश राय बच्चन | Hindi Poem on Mother by Harivansh Rai Bachchan
आज मेरा फिर से मुस्कुराने का मन किया।
माँ की ऊँगली पकड़कर घूमने जाने का मन किया॥
उंगलियाँ पकड़कर माँ ने मेरी मुझे चलना सिखाया है।
खुद गीले में सोकर माँ ने मुझे सूखे बिस्तर पे सुलाया है॥
माँ की गोद में सोने को फिर से जी चाहता है।
हाथो से माँ के खाना खाने का जी चाहता है॥
लगाकर सीने से माँ ने मेरी मुझको दूध पिलाया है।
रोने और चिल्लाने पर बड़े प्यार से चुप कराया है॥
मेरी तकलीफ में मुझ से ज्यादा मेरी माँ ही रोयी है।
खिला-पिला के मुझको माँ मेरी, कभी भूखे पेट भी सोयी है॥
कभी खिलौनों से खिलाया है, कभी आँचल में छुपाया है।
गलतियाँ करने पर भी माँ ने मुझे हमेशा प्यार से समझाया है॥
माँ के चरणो में मुझको जन्नत नजर आती है।
लेकिन माँ मेरी मुझको हमेशा अपने सीने से लगाती है॥
जो बीत गई, सो बात गई
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में वह था एक कुसुम
थे उसपर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुवन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुर्झाई कितनी वल्लरियाँ
जो मुर्झाई फिर कहाँ खिली
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुवन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई
हरिवंश राय बच्चन की कविता हिंदी में
जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आँगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठतें हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई
मृदु मिटटी के हैं बने हुए
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन लेकर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई
ओ गगन के जगमगाते दीप!
दीन जीवन के दुलारे
खो गये जो स्वप्न सारे,
ला सकोगे क्या उन्हें फिर खोज हृदय समीप?
ओ गगन के जगमगाते दीप!
यदि न मेरे स्वप्न पाते,
क्यों नहीं तुम खोज लाते
वह घड़ी चिर शान्ति दे जो पहुँच प्राण समीप?
ओ गगन के जगमगाते दीप!
यदि न वह भी मिल रही है,
है कठिन पाना-सही है,
नींद को ही क्यों न लाते खींच पलक समीप?
ओ गगन के जगमगाते दीप!
मैंने गाकर दुख अपनाए!
कभी न मेरे मन को भाया,
जब दुख मेरे ऊपर आया,
मेरा दुख अपने ऊपर ले कोई मुझे बचाए!
मैंने गाकर दुख अपनाए!
कभी न मेरे मन को भाया,
जब-जब मुझको गया रुलाया,
कोई मेरी अश्रु धार में अपने अश्रु मिलाए!
मैंने गाकर दुख अपनाए!
पर न दबा यह इच्छा पाता,
मृत्यु-सेज पर कोई आता,
कहता सिर पर हाथ फिराता-
’ज्ञात मुझे है, दुख जीवन में तुमने बहुत उठाये!
मैंने गाकर दुख अपनाए!
दोस्तो अगर आपकों हमारे द्वारा लिखी गयी Poems By Harivansh Rai Bachchan in Hindi कविता पसंद आए हो तो अपने दोस्तों और परिवार के साथ शेयर करना ना भूले और साथ ही कोई सवाल या सुझाव हो तो कमेंट करके जरूर बताएं। धन्यवाद