आज मैं हिंदी व्याकरण slesh alankar के एक दिलचस्प विषय पर बात करना चाहूंगा।
अलंकार (slesh alankar)
एक आकृति है जिसका अर्थ है आभूषण या अलंकरण। जिस प्रकार स्त्रियाँ अपने सौन्दर्य को बढ़ाने के लिए गहनों का प्रयोग करती हैं, उसी प्रकार हिन्दी भाषा में अलंकार का प्रयोग अनिवार्य रूप से किसी कविता की सुन्दरता को बढ़ाने के लिए किया जाता है।
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अलंकार को मोटे तौर पर दो समूहों में वर्गीकृत किया गया है, ये हैं:
1. शब्दालंकार :- शब्दलंकार, यह दो शब्द शब्द (शब्द) + अलंकार (आभूषण) से बना है – कुछ विशिष्ट शब्द जो एक कविता / कविता में एक सजावटी प्रभाव पैदा करते हैं।
2. अर्थलंकार :- अर्थलंकार यह दो शब्दों अर्थ (अर्थ) + अलंकार (आभूषण) से बना है – शब्दों का अर्थ जो आवश्यक वृद्धि पैदा करता है।
सबसे आम शब्दालंकार (शब्दलंकार) जो आपको हिंदी कविता में मिल सकते हैं:
1. अनुप्रास (अनुप्रस)
2. यमक (यमक)
3. श्लेष्मा (श्लेश) (पुण)
श्लेष्मा (slesh alankar)
“शिल” का अर्थ है- “चिपकना” । जहां एक शब्द एक ही बार में होने पर दो अर्थ देता है श्लेष्म अलंकार। स्थिर रहने के दौरान ही धूप में रहने के बाद भी ऐसा ही करता है।
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श्लेष अलंकार दो प्रकार के होते है-
- अभंग श्लेष
- सभंग श्लेष
उदहारण :-रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।
एक दोहा है जो कबीर जी का बहुत ज्यादा प्रसिद्ध दोहा है।
रहिमन – पानी – राखिये , बिन – पानी – सब – सून।
पानी – गए – न – उबरे , मोती – मानुष – चून।।
इस दोहे के अंदर के भाव में कबीर जी कहते है की हमे अपने प्रतिष्ठा की यत्न पूर्वक इच्छा भी करनी चाहिए , क्युकी बिना कोई इज्जत के बिना पानी के सब कुछ सुना है। सब कुछ बेकार है। और अगर एक बार इज्जत चली जाती है तो मोती मानुष चून ये तीनो चीजे बेकार हो जाती है। अब मोती के लिए पानी का क्या अर्थ है , मानुष के लिए पानी का क्या अर्थ है और चून के लिए पानी का क्या अर्थ है। मोती से चमक का तात्पर्य है और मानुष से इज्जत का तात्पर्य है और चून से चुना या आटा तात्पर्य है।
मोती / मानुष / चून, आटा और चुना के लिए पानी का अर्थ जल है , मनुष्य के लिए पानी का अर्थ इज्जत , प्रतिष्ठा है और मोती के लिए पानी का अर्थ चमक है। , तो इस दोहे में जो तीसरा पानी शब्द आया है उसका अर्थ तीन है तो हम कह सकते है की ये श्लेष अलंकार
उदा.- 2 मंगन को देख पट देत बार बार
व्याख्या: इस के उदाहरण में ‘मंगन’ के दो अर्थ कपडे तथा दरवाजा है।
उदा.- 3 जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारि उजियारे लागे, बढे अंधेरो होय।।
व्याख्या – बढे शब्द में दो चिपके हुए अर्थ – बढे – बड़ा होने पर, बढे – बुझने पर
उदा.- 4 चरण धरत चिंता करत चितवत चारोंहुँ ओर
सुवरन को खोजत फिरे, कवि, व्यभिचारी, चोर।।
व्याख्या – ‘सुवरन‘ के तीन अर्थ – सुवरन – अच्छे शब्द, सुवरन – स्वर्ण और सुवरन – सुन्दर स्त्री है।
उदा. – 5 प्रियतम बतला दे लाल मेरा कहाँ है।
व्याख्या: ‘लाल’ का अर्थ बेटा या रत्न है।
उदा.- 6 माया महाठगनी हम जानी
त्रिगुण फ़ांस लिए कर डोले बोले मधुर वाणी।।
व्याख्या – त्रिगुण का अर्थ – सत, रज, तम
उदाहरण – 7 नर की अरु नलनीर की गति एकै कर जोय
जेतो नीचो हवै चले ततो ऊंचो हो।.
उदाहरण – 8 मधुवन की छाती को देखो, सूखी कितनी इसकी कलियाँ। (slesh alankar)
व्याख्या : ‘कलियाँ’ शब्द के चिपके हुए अर्थ – कलियाँ – फूल खिलने से पहले कली, कलियाँ – यौवन से पहले की अवस्था है।